नेपाल ने टिकटॉक पर लगाया था प्रतिबंध, अब नियमों का पालन कर फिर से शुरू हुआ प्लेटफ़ॉर्म
नेपाल की सरकार ने यह कदम उस समय उठाया जब देश में विभिन्न मुद्दों को लेकर विरोध प्रदर्शन तेज हो गए थे। राजनीतिक अस्थिरता पिछले कुछ वर्षों से नेपाल की पहचान बनी हुई है। बार-बार बदलती सरकारें, गठबंधन की खींचतान, और नीतिगत असमंजस ने लोगों का भरोसा कमजोर कर दिया है। ऐसे माहौल में सोशल मीडिया विरोध के लिए सबसे तेज़ और प्रभावशाली माध्यम बन गया, जिससे अफवाहें फैलने लगीं और विरोध तेज हुआ। सरकार का दावा है कि सोशल मीडिया पर फैल रही झूठी खबरें और उकसावे से कानून-व्यवस्था बिगड़ रही थी। इसी आधार पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स – जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और टेलीग्राम – पर अस्थायी रोक लगा दी गई।
हालाँकि, प्रतिबंध की आलोचना भी तेज हुई। कई युवाओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों ने इसे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बताया। उनका कहना है कि सरकार असहमति की आवाज़ को दबाने के लिए इस तरह के प्रतिबंधों का सहारा ले रही है। सोशल मीडिया पर रोक लगाना लोगों के आपसी संवाद, विरोध दर्ज करने और सूचनाओं को साझा करने पर सीधे असर डालता है। इसके चलते लोगों में और भी नाराज़गी बढ़ी।
इस घटना ने नेपाल के मौजूदा आर्थिक संकट को भी उजागर किया है। महँगाई बढ़ती जा रही है, बेरोज़गारी दर ऊँची है, और सीमित संसाधनों की वजह से सामान्य नागरिकों का जीवन कठिन होता जा रहा है। युवाओं में निराशा और असंतोष है। देश में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सेवाओं की स्थिति पहले से ही चिंताजनक है। ऐसे में सोशल मीडिया प्रतिबंध ने असंतोष को और भड़काया, क्योंकि यही मंच उन समस्याओं पर चर्चा का एकमात्र खुला स्थान था।राजनीतिक असहमति भी इस विरोध की बड़ी वजह है। विभिन्न पार्टियों के बीच सत्ता की खींचतान ने जनता को यह महसूस कराया कि उनकी आवाज़ को दबाया जा रहा है। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि सरकार विरोधियों को चुप कराने के लिए तकनीकी प्लेटफॉर्म्स पर रोक लगा रही है। वहीं सरकार का कहना है कि देश में फैल रही गलत सूचनाओं से हिंसा भड़क सकती है, इसलिए यह रोक आवश्यक थी।
सुरक्षा का तर्क सामने रखा गया है, लेकिन लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है। नेपाल में पहले भी इंटरनेट बंद किए जाने या प्लेटफॉर्म्स को प्रतिबंधित करने की घटनाएँ सामने आ चुकी हैं, लेकिन हर बार इससे असंतोष बढ़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी कार्रवाइयों से सरकार और जनता के बीच संवाद की खाई और चौड़ी होती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक महत्वपूर्ण स्तंभ है; जब उसे रोक दिया जाता है तो समाज में असंतोष और अविश्वास पैदा होता है।
इसके अलावा, सामाजिक विभाजन और क्षेत्रीय असमानता भी विरोध की वजह बनी। देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोग आर्थिक और सामाजिक सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं। वहीं, शहरी क्षेत्रों में युवा वर्ग इंटरनेट और डिजिटल माध्यमों के ज़रिए अपने अधिकारों की आवाज़ बुलंद कर रहा है। ऐसे में सोशल मीडिया प्रतिबंध उनके लिए अपने मुद्दे उठाने का रास्ता बंद कर देता है।
यह भी उल्लेखनीय है कि नेपाल की भौगोलिक स्थिति और सीमित संसाधनों की वजह से इंटरनेट तक पहुँच पहले से ही कई जगहों पर कठिन है। प्रतिबंध ने इसे और जटिल बना दिया। कई लोगों ने सवाल उठाया कि जब सूचना तक पहुँच ही सीमित है तो इस तरह की रोक से किसका भला होगा?
विशेषज्ञों का कहना है कि यह केवल तकनीकी रोक नहीं बल्कि शासन और नागरिकों के बीच विश्वास संकट का प्रतीक है। लोकतंत्र में नागरिकों को अपनी आवाज़ रखने का अधिकार मिलना चाहिए, और जब सरकार इस अधिकार को सीमित करती है तो विरोध स्वाभाविक रूप से बढ़ता है।
इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया है। मानवाधिकार संगठनों ने सरकार से अपील की है कि वह संवाद और पारदर्शिता के रास्ते अपनाए। वहीं कई देशों ने सोशल मीडिया प्रतिबंध को लेकर चिंता जताई है कि इससे लोकतांत्रिक संस्थाओं पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
इस तरह, नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध केवल एक तकनीकी कदम नहीं है। यह राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संकट, सामाजिक असमानता और नागरिक अधिकारों के संघर्ष का प्रतीक बन गया है। जब संवाद के रास्ते बंद होते हैं तो असंतोष बढ़ता है, और यही असंतोष विरोध और आंदोलन का रूप ले लेता है। इसलिए सोशल मीडिया प्रतिबंध को समझने के लिए हमें इसकी सतह से आगे जाकर उन जड़ों तक देखना होगा, जो लंबे समय से जमा असंतोष और विश्वास की कमी से बनी हैं। सरकार ने रविवार को जारी बयान में कहा कि वह विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करती है और इसका उद्देश्य ऐसा माहौल बनाना है जहाँ लोग अपने विचार सुरक्षित और बिना किसी रुकावट के व्यक्त कर सकें।
इससे पहले सरकार ने टेलीग्राम पर भी रोक लगा दी थी। उसका कहना था कि यह सुरक्षित प्लेटफ़ॉर्म ऑनलाइन धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों में इस्तेमाल हो रहा था। सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया गया। रविवार को सरकार ने स्पष्ट किया कि वह नागरिकों की सोचने और अपनी बात कहने की आज़ादी का समर्थन करती है। सरकार का कहना है कि वह ऐसा वातावरण बनाने के लिए प्रतिबद्ध है जहाँ लोग बिना डर या बाधा के अपने विचार साझा कर सकें।
हाल ही में सरकार ने टेलीग्राम को भी ब्लॉक कर दिया था। सरकार ने कहा कि यह प्लेटफ़ॉर्म साइबर अपराध, धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल हो रहा था, इसलिए सुरक्षा और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए यह कदम आवश्यक था। नेपाल सरकार ने पिछले साल टिकटॉक को देश में बंद कर दिया था। सरकार का आरोप था कि प्लेटफ़ॉर्म स्थानीय कानूनों का पालन नहीं कर रहा है। बाद में टिकटॉक ने नेपाल सरकार द्वारा तय किए गए नियमों को मानने की सहमति दी, जिसके बाद अगस्त में प्रतिबंध हटाया गया और प्लेटफ़ॉर्म को फिर से चालू कर दिया गया।
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