रांची:
बिरसा मुंडा जैविक उद्यान की मासूम रौनक ‘मिस्टी’ का सफ़र एक भावनात्मक विदाई राॅंची । झारखंड की राजधानी रांची का बिरसा मुंडा जैविक उद्यान ओरमांझी ज़ू गुरुवार सुबह एक गहरी उदासी से भर गया । पश्चिम बंगाल के अलीपुर चिड़ियाघर से लाई गई छह वर्षीय मादा जिराफ़ मिस्टी अब इस दुनिया में नहीं रही । बुधवार देर रात उसकी अचानक मौत हो गई । यह खबर आते ही न सिर्फ़ रांची बल्कि पूरे झारखंड और आसपास के क्षेत्रों में जंगली जीवन और पशु प्रेमियों में गहरा शोक फैल गया । ज़ू प्रशासन के मुताबिक , मिस्टी को जब अलीपुर ज़ू से 08 अगस्त 2025 को रांची लाया गया था , तब लोगों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था । लम्बी गर्दन , सुंदर चाल और मासूम आँखों वाली यह जिराफ़ कुछ ही दिनों में बिरसा जैविक उद्यान की रौनक बन गई थी । --- घटनाक्रम रात के सन्नाटे में आई बुरी खबर बिरसा जैविक उद्यान के चिकित्सक डॉ. ओम प्रकाश ने बताया कि बुधवार की आधी रात उन्हें सूचना मिली कि जिराफ़ मिस्टी अचानक जमीन पर गिर गई है । जब तक वे अपने सहयोगियों के साथ दौड़ते हुए वहाँ पहुँचे , तब तक सब खत्म हो चुका था । मिस्टी ने दम तोड़ दिया था । तुरंत विशेषज्ञों की टीम को बुलाया गया । पोस्टमार्टम किया गया और फिर नियमानुसार उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया । अधिकारियों का कहना है कि मौत का कारण स्पष्ट रूप से सामने नहीं आया है , हालांकि प्राथमिक रूप से यह अचानक स्वास्थ्य बिगड़ने की वजह से हुई प्रतीत होती है । --- मिस्टी का छोटा लेकिन यादगार सफर जिराफ़ मिस्टी महज़ छह साल की थी । जिराफ़ प्रजाति की औसत उम्र 20 से 25 साल तक होती है , ऐसे में उसकी असमय मौत सबके लिए चौंकाने वाली रही । अगस्त 2025 में जब वह रांची लाई गई थी , तब लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी । ज़ू प्रबंधन ने उसे विशेष आहार दिया , उसके लिए एक अलग एनक्लोज़र बनाया गया था । बच्चों के बीच मिस्टी तुरंत लोकप्रिय हो गई थी । स्कूलों से आने वाले छात्र-छात्राओं के लिए वह सबसे आकर्षण का केंद्र थी । मात्र कुछ हफ़्तों में ही लोगों ने उससे भावनात्मक रिश्ता जोड़ लिया था । ---
वन्यजीव प्रेमियों की प्रतिक्रिया झारखंड के कई वन्यजीव प्रेमियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने मिस्टी की मौत पर गहरा दुख व्यक्त किया । उनका कहना है कि राज्य में जिराफ़ जैसी विदेशी प्रजाति का जीवित रहना पर्यटकों और बच्चों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता । रांची यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुशील कुमार ने कहा – "यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारे चिड़ियाघर इतने बड़े और संवेदनशील जानवरों की देखभाल के लिए पूरी तरह सक्षम हैं ? हमें बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रशिक्षण की आवश्यकता है ।" ---
जिराफ़ एक विशेष प्रजाति जिराफ़ अफ्रीकी महाद्वीप की मूल प्रजाति है । अपनी लंबी गर्दन और लगभग 5-6 मीटर की ऊँचाई के कारण यह पृथ्वी के सबसे ऊँचे जानवर माने जाते हैं । आयु 20–25 वर्ष कैद में थोड़ी कम हो सकती है खासियत लंबी गर्दन और पैरों के कारण पेड़ों की ऊँचाई पर लगी पत्तियाँ आसानी से खा लेते हैं । प्रतीक शांति , सौम्यता और अनोखी सुंदरता । भारत के कुछ चुनिंदा चिड़ियाघरों में ही जिराफ़ देखने को मिलते हैं । इसलिए मिस्टी का होना रांची के लिए किसी उपहार से कम नहीं था । --- चिड़ियाघर और लोगों का भावनात्मक लगाव रांची का बिरसा मुंडा जैविक उद्यान पहले से ही कई दुर्लभ और विदेशी प्रजातियों का घर है । लेकिन जब मिस्टी आई , तो उद्यान में एक नया आकर्षण जुड़ा । रोजाना दर्जनों परिवार सिर्फ़ उसे देखने आते थे । छोटे बच्चे उसकी ऊँचाई और मासूमियत देखकर आश्चर्यचकित रहते । कई लोग उसे “रांची की शान” कहने लगे थे । इसी वजह से उसकी अचानक मौत ने सभी को गहरी पीड़ा दी है । --- मौत के संभावित कारण हालांकि आधिकारिक रूप से अभी रिपोर्ट आनी बाकी है , लेकिन विशेषज्ञों ने कुछ संभावनाएँ जताई हैं
👉 स्वास्थ्य संबंधी छिपी हुई समस्या – कभी-कभी बड़े जानवरों में आंतरिक बीमारी लंबे समय तक पता नहीं चल पाती ।
👉 नई जगह का तनाव Stress of relocation – अलीपुर से रांची लाने के बाद पर्यावरण बदलने से जानवरों पर मानसिक और शारीरिक असर पड़ता है ।
👉 आहार में बदलाव – अचानक खानपान या पानी के वातावरण में बदलाव भी जानलेवा साबित हो सकता है ।
👉 अनजानी चोट या गिरना – बड़ी काया वाले जिराफ़ कभी-कभी चोट लगने से भी गंभीर हालत में पहुँच जाते हैं । --- भविष्य के लिए सीख मिस्टी की मौत ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं । क्या भारत में विदेशी प्रजातियों के लिए पर्याप्त मेडिकल सुविधाएँ उपलब्ध हैं ? क्या चिड़ियाघरों में वन्यजीवों की मानसिक स्वास्थ्य stress management पर ध्यान दिया जाता है ? क्या हमें और बेहतर रिसर्च और तैयारी के साथ ही ऐसे जानवरों को लाना चाहिए ? इस घटना ने प्रशासन को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है कि भविष्य में इस तरह की त्रासदी न हो । --- आम लोगों की प्रतिक्रियाएँ रांची और आस-पास के लोग सोशल मीडिया पर दुख और गुस्सा दोनों जाहिर कर रहे हैं । किसी ने लिखा – “इतनी मेहनत से लाई गई जिराफ़ कुछ ही दिनों में चली गई , ये बहुत दुखद है ।” एक बच्चे की माँ ने कहा – “हमने सोचा था कि बच्चों को बार-बार यहाँ लाकर जिराफ़ दिखाएँगे , पर अब वो सपना अधूरा रह गया ।” --- मिस्टी की यादें भले ही मिस्टी का जीवन छोटा रहा , लेकिन उसने सबके दिलों में गहरी छाप छोड़ी । उसकी मासूम आँखें , पेड़ की पत्तियों को धीरे-धीरे खाना और बच्चों की तरफ़ देखना – यह सब अब भी लोगों की आँखों में बसा रहेगा । --- निष्कर्ष जिराफ़ मिस्टी की मौत सिर्फ़ एक जानवर की मौत नहीं है , बल्कि यह सवाल है हमारी व्यवस्थाओं , हमारी संवेदनशीलता और हमारी ज़िम्मेदारियों का । एक छोटे से जीवन ने हमें यह याद दिला दिया कि प्रकृति और वन्यजीवों की रक्षा करना सिर्फ़ सरकार का नहीं , बल्कि हम सबका कर्तव्य है । आख़िरकार , जब हम अपने बच्चों को चिड़ियाघर ले जाते हैं और उन्हें जानवर दिखाते हैं , तो यह सिर्फ़ मनोरंजन नहीं होता , बल्कि यह प्रकृति से जुड़ाव और सीखने का अनुभव होता है । मिस्टी भले अब हमारे बीच न हो , लेकिन उसने हमें यह सिखाया कि हर जीव मूल्यवान है और उसकी रक्षा करना हमारी ज़िम्मेदारी है । ---
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