धपरा में साइकिल रेस बना आकर्षण का केंद्र — शाम से रात तक गूंजता रहा तालियों का शोर
गांव धपरा इन दिनों खेल और मनोरंजन का केंद्र बन गया है। गांव के मैदान में चल रहे साइकिल रेस का यह तीसरा दिन है, जहां शाम ढलते ही लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। चारों ओर लाइट की जगमगाहट, तालियों की गूंज और बच्चों की खिलखिलाहट से पूरा माहौल उत्सवमय बना हुआ है।
आसपास के गांवों — पथरगामा, बसंतराय, ओरियापानी, कोरियाना और भालगुड़ी जैसे इलाकों से भी लोग इस कार्यक्रम को देखने पहुंच रहे हैं। मैदान में बच्चे झूम रहे हैं, महिलाएं उत्साह से खेल देख रही हैं, और बुज़ुर्ग पुराने दिनों की यादों में खोए हैं।
कार्यक्रम का संचालन राजा और कलीम द्वारा किया जा रहा है। दोनों युवक इलाके में घूम-घूमकर ऐसे पारंपरिक खेलों का आयोजन करते हैं और अपनी आजीविका इसी से चलाते हैं। उन्होंने बताया कि इस खेल का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि ग्रामीण युवाओं में खेल की भावना और एकता को बढ़ावा देना है।
इस आयोजन की खास बात यह है कि इसमें किसी आधुनिक साधन का उपयोग नहीं किया गया है। सभी खिलाड़ी अपनी पुरानी साइकिलों से रेस में हिस्सा लेते हैं और दर्शक हर मोड़ पर उत्साह से तालियां बजाते हैं। रात 9 बजे तक चलने वाला यह कार्यक्रम अब गांव की पहचान बन गया है।
गांव के युवाओं ने बताया कि इस रेस से न केवल मनोरंजन होता है बल्कि स्थानीय व्यापारियों को भी लाभ मिलता है। मैदान के किनारे चाय, नाश्ता और खिलौनों की दुकानें सज गई हैं। शाम होते ही जैसे पूरा धपरा एक छोटे मेले में बदल जाता है।
ग्रामीणों का कहना है कि ऐसे आयोजनों से गांव की संस्कृति और परंपराएं जीवित रहती हैं। गांवों में इस तरह का माहौल लंबे समय बाद देखने को मिला है। अब लोग चाहते हैं कि इस आयोजन को हर साल नियमित रूप से कराया जाए ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस परंपरा को देख सकें।
अंत में जब विजेता की घोषणा होती है, तो मैदान तालियों और शोर से गूंज उठता है। लोगों के चेहरों पर मुस्कान, बच्चों की उत्सुकता और आयोजकों की मेहनत — सब मिलकर धपरा के इस आयोजन को यादगार बना रहे हैं।
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