गेरुआ नदी पर चेकडैम की आस में सूख रही खेतों की प्यास
बसंतराय, गोड्डा।
बिहार-झारखंड बॉर्डर पर बहने वाली गेरुआ नदी कभी इलाके की जीवनदायिनी मानी जाती थी। ढाई दशक पहले तक इस नदी में सालभर पर्याप्त पानी रहता था, जिससे लगभग 20 हज़ार एकड़ से अधिक भूमि की सिंचाई होती थी। खेतों में लहलहाती फसलें किसानों की मेहनत का फल थीं और क्षेत्र में खुशहाली छाई रहती थी।
लेकिन वक्त के साथ हालात बदल गए। बालू उठाव और अतिक्रमण ने नदी की सेहत बिगाड़ दी। नतीजा यह हुआ कि गेरुआ नदी का जलस्तर लगातार गिरता गया। आज हालात यह हैं कि नदियों के तटबंध पर बने आउटलेट महज शोभा की वस्तु बनकर रह गए हैं। पानी खेतों तक पहुँच ही नहीं पाता।
किसान अब मजबूरी में बोरिंग और बारिश के भरोसे खेती करने को मजबूर हैं। इससे लागत बढ़ गई है और उपज भी कम हो गई है। किसानों का कहना है कि पहले जब वर्षा होती थी तो गेरुआ नदी, डाड़ और बांध पानी से लबालब भर जाते थे। चारों तरफ हरियाली रहती थी, लेकिन अब हालात बिल्कुल उलट हैं।
गेरुआ नदी और उससे जुड़ी डाड़ और बांध अब लगभग गायब हो चुके हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि वर्षों से अतिक्रमणकारियों ने नदी की जमीन पर कब्जा कर लिया है। कई जगहों पर खेती-बागवानी शुरू कर दी गई है, जिसकी वजह से नदी का बहाव और चौड़ाई दोनों प्रभावित हुए हैं।
ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों के बयान
भविष्य की चुनौतियाँ और चेकडैम के फायदे
ग्रामीणों का कहना है कि अगर प्रशासन अभी भी लापरवाही करता रहा तो भविष्य में हालात और गंभीर हो सकते हैं। गेरुआ नदी का बांध अगर टूट गया तो बसंतराय और उसके आसपास के कई गांव जलमग्न हो जाएंगे। इससे खेती ही नहीं, बल्कि लोगों के घर, सड़कें और बुनियादी ढाँचा भी पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा।
बार-बार बांध कमजोर होने की खबरों से इलाके में दहशत फैल जाती है। इस बार तो कम बारिश होने के कारण खतरा टल गया, लेकिन आने वाले दिनों में तेज बारिश और बाढ़ की स्थिति बनी तो हालात बिगड़ सकते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि केवल “आश्वासन” से काम नहीं चलेगा, अब स्थायी समाधान चाहिए।
चेकडैम बनने से मिलने वाले फायदे:
- किसानों को सीधी राहत – खेतों की सिंचाई आसान हो जाएगी और फसल उत्पादन बढ़ेगा।
- जल स्तर में सुधार – इलाके के कुएं और बोरिंग फिर से भरेंगे, जिससे पानी की समस्या खत्म होगी।
- बाढ़ पर नियंत्रण – बारिश के दिनों में पानी को रोका जा सकेगा, जिससे गांव डूबने से बचेंगे।
- स्थायी समाधान – हर साल मिट्टी के बांध टूटने की समस्या से छुटकारा मिलेगा।
- आर्थिक विकास – खेती से किसानों की आमदनी बढ़ेगी और पलायन रुकेगा।
ग्रामीणों की स्पष्ट मांग है कि गेरुआ नदी पर गाइडवाल और चेकडैम का निर्माण जल्द से जल्द शुरू होना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो यह पूरा इलाका न सिर्फ बाढ़ और आपदा से सुरक्षित हो जाएगा, बल्कि खेती-किसानी में भी नई ऊर्जा आएगी।
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