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महान समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की जयंती पर देशभर में श्रद्धांजलि
आज (26 सितम्बर) देशभर में महान स्वतंत्रता सेनानी, दार्शनिक, शिक्षाविद्, लेखक और समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की जयंती मनाई जा रही है। उनके समाज सुधारक विचार, नारी शिक्षा के प्रति समर्पण और साहित्यिक योगदान आज भी लोगों को प्रेरित कर रहे हैं।
जीवन परिचय
समाज सुधार और नारी शिक्षा
विद्यासागर ने सामाजिक कुरीतियों के खात्मे के लिए संघर्ष किया। उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में सक्रियता थी — उनके प्रयासों से 1856 में विधवा पुनर्विवाह से संबंधित कायदे और सामाजिक सम्वेदनशीलता में परिवर्तन आना शुरू हुआ, जिससे विधवाओं को जीवन की नई आशा मिली। वह बाल विवाह के प्रबल विरोधी थे और महिलाओं की शिक्षा पर जोर देते थे।
भाषा, साहित्य और शैक्षणिक योगदान
आधुनिक बंगाली भाषा को सरल बनाने में विद्यासागर की भूमिका अहम रही। उनकी पुस्तक ‘बोर्नो पोरिचोय’ (बंगाली वर्णमाला परिचय) आज भी शुरुआती पाठ्यक्रमों में प्रयोग होती है। साहित्य में उनकी रचनाएँ जैसे बेताल पंचविंसति (1847) और बिधोबाबिवाह (1855) समाज सुधार और नैतिकता के विषयों पर केंद्रित हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने मॉडल स्कूल स्थापित किए और उच्च शिक्षा में पश्चिमी विचारों का समावेश कर आधुनिक शिक्षण पद्धतियों को अपनाया। 1872 में स्थापित किया गया उनका संस्थान — मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन — आज विद्यासागर कॉलेज के नाम से जाना जाता है।
विरासत और प्रभाव
विद्यासागर का संपूर्ण जीवन समाज के निर्बल वर्गों, विशेषकर निर्धनों और वंचितों के उत्थान के लिए समर्पित रहा। उनकी नीतियाँ और शिक्षाएँ आज भी सामाजिक सुधार समितियों, शैक्षणिक संस्थानों और साहित्यिक विमर्श में उद्धरण के रूप में आती हैं। उनकी जयंती पर विभिन्न संस्थान, विद्यालय और सामाजिक संगठन श्रद्धांजलि कार्यक्रम कर रहे हैं।
प्रोग्राम और श्रद्धांजलि
स्थानीय पाठशालाओं और कॉलेजों में आज विशेष व्याख्यान, पुस्तिका वितरण और स्मृति सभाओं का आयोजन हुआ। कई सामाजिक संस्थाओं ने उनके आदर्शों को जीवंत रखने के लिये फ्री-शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों की घोषणा भी की है।
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