धपरा पंचायत का बुनकर भवन बना जानवरों का अड्डा
रिपोर्ट: अवतार न्यूज़ संवाददाता | गोड्डा, झारखंड
बुनकर भवन की उपेक्षा – कभी विकास का प्रतीक, आज गंदगी का केंद्र
गोड्डा जिले के बसंतराय प्रखंड के ग्राम पंचायत धपरा में 1999 के दशक में निर्मित बुनकर भवन आज उपेक्षा और लापरवाही की भेंट चढ़ चुका है। कभी गांव के आर्थिक विकास और रोजगार सृजन का केंद्र रहा यह भवन आज जानवरों का अड्डा बन गया है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि कई बार अधिकारी इस भवन के पास से गुजरते हैं, लेकिन इसकी दयनीय स्थिति पर किसी की नज़र नहीं पड़ती।
भवन की मजबूती – फिर भी उपयोग से बाहर
ग्रामीण बताते हैं कि बुनकर भवन का निर्माण अत्यंत मजबूत और टिकाऊ ढांचे में हुआ था। इसमें आज भी कई सरकारी विभागों के दफ्तर खोले जा सकते हैं। लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के कारण यह भवन पूरी तरह से बेकार पड़ा हुआ है। दीवारों पर गंदगी, टूटी खिड़कियां और चारों ओर फैला कचरा इस भवन की दुर्दशा बयां करता है।
गांव में सरकारी जमीन होते हुए भी नये भवनों को नहीं मिल रही जगह
ग्रामीणों ने नाराजगी व्यक्त करते हुए बताया कि धपरा पंचायत में सरकारी जमीन की कोई कमी नहीं है, लेकिन फिर भी जब भी किसी नए भवन का प्रस्ताव आता है, तो जमीन उपलब्ध न होने का बहाना बना दिया जाता है। इससे कई योजनाएं अधर में लटक जाती हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यदि बुनकर भवन का सही उपयोग किया जाए, तो गांव में विकास के नए रास्ते खुल सकते हैं।
स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी – सामुदायिक अस्पताल का सपना अधूरा
हाल ही में राज्य सरकार ने हर पंचायत में सामुदायिक अस्पताल बनाने की योजना शुरू की है। लेकिन धपरा पंचायत में अधिकारियों की लापरवाही के कारण अस्पताल निर्माण के लिए अब तक जमीन उपलब्ध नहीं कराई गई है। ग्रामीणों को उम्मीद थी कि इस बार उनके गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनेगा, लेकिन निराशा ही हाथ लगी।
अतिक्रमण की मार – खेल मैदान हुआ कब्जे में
धपरा उच्च विद्यालय, जो वर्षों से शिक्षा का केंद्र रहा है, आज अतिक्रमण की मार झेल रहा है। स्कूल के छात्रों के खेलने का मैदान धीरे-धीरे कब्जे में लिया जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में बच्चों के पास खेलने की कोई जगह नहीं बचेगी।

खेलो झारखंड योजना का असर नहीं दिखा धपरा में
राज्य सरकार “खेलो झारखंड” के माध्यम से ग्रामीण युवाओं को खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ाने की बात करती है। लेकिन जब गांव में खेल का मैदान ही न बचे तो बच्चे कैसे आगे बढ़ेंगे? खेल के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव सरकार की योजनाओं की हकीकत को उजागर करता है।

स्थानीय प्रशासन की चुप्पी – सवालों के घेरे में अधिकारी
ग्रामीणों का आरोप है कि अधिकारियों का रवैया ढुलमुल है। वे कई बार शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। पंचायत प्रतिनिधियों से लेकर प्रखंड स्तरीय अधिकारियों तक सभी इस मुद्दे पर मौन हैं। सवाल उठता है कि आखिर इतनी मजबूत सरकारी इमारत को बर्बाद होने क्यों दिया जा रहा है?
ग्रामीणों की मांग – भवन का पुनः उपयोग और साफ-सफाई की व्यवस्था
ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि बुनकर भवन को जल्द से जल्द दुरुस्त किया जाए और इसे किसी सरकारी कार्य या पंचायत कार्यालय के रूप में पुनः उपयोग में लाया जाए। साथ ही गांव की सभी सरकारी भूमि की सही पहचान कर उसका उपयोग जनहित में किया जाए।
अवतार न्यूज़ से बातचीत में ग्रामीणों ने कहा कि वे सरकार से उम्मीद रखते हैं कि धपरा पंचायत की उपेक्षा समाप्त हो। उनका कहना है कि गांवों का विकास तभी संभव है जब सरकारी भवनों और संसाधनों का सही उपयोग किया जाए।
यह खबर इस बात का प्रमाण है कि ग्रामीण भारत के विकास में स्थानीय प्रशासन की भूमिका कितनी अहम है, और उसकी लापरवाही कितनी महंगी साबित हो सकती है।
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