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Friday, October 3, 2025

'पति को बिना शर्त रिहा करो': जोधपुर जेल में बंद सोनम वांगचुक की पत्नी ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

'सवाल पूछने पर भी कैद?' सोनम वांगचुक की रिहाई के लिए पत्नी सुप्रीम कोर्ट में

'सवाल पूछने पर भी कैद?' सोनम वांगचुक की रिहाई के लिए पत्नी ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा; सरकार पर उठे गंभीर सवाल

लद्दाख के जाने-माने पर्यावरण एक्टिविस्ट और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी का मामला अब देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे. अंगमो ने अपने पति को तुरंत और बिना शर्त रिहा करने की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की है, जिससे केंद्र सरकार और लद्दाख प्रशासन की कार्रवाई पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।

वांगचुक को बीते 24 सितंबर को लद्दाख में हुई हिंसक घटनाओं के बाद गिरफ्तार किया गया था और उन्हें लेह से दूर राजस्थान की जोधपुर सेंट्रल जेल में रखा गया है। उनकी पत्नी ने इसे गैर-कानूनी हिरासत बताते हुए अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। इससे पहले गीतांजलि, वांगचुक की रिहाई के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भी पत्र लिख चुकी हैं।


सोनम वांगचुक लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और संविधान की छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा प्रदान करने की मांग कर रहे आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक हैं। उनकी गिरफ्तारी और उन्हें उनके गृह राज्य से सैकड़ों किलोमीटर दूर जोधपुर की जेल में रखना कई मूलभूत प्रश्न खड़े करता है:

  • राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप: लद्दाख में स्थानीय लोगों की मांगों का नेतृत्व कर रहे एक प्रतिष्ठित व्यक्ति को अचानक दूर की जेल में क्यों रखा गया है? क्या यह कार्रवाई केवल विरोध की आवाज़ को दबाने के लिए नहीं की गई है?
  • क्या सरकार यह बताएगी कि वांगचुक की गिरफ्तारी और हिरासत किस आधार पर वैध है? उनकी पत्नी को उनकी हिरासत का आदेश तक नहीं मिला है। क्या सरकार पारदर्शिता का पालन कर रही है?
  • लोकतंत्र में विरोध का अधिकार: एक ओर सरकार लोकतंत्र के मूल्यों की बात करती है, वहीं दूसरी ओर शांतिपूर्ण विरोध का समर्थन करने वाले एक कार्यकर्ता को जेल भेज दिया जाता है। क्या सरकार यह संदेश दे रही है कि उसके खिलाफ आवाज उठाना देशद्रोह जैसा है?

गीतांजलि जे. अंगमो की याचिका में उठाए गए इन सवालों से स्पष्ट है कि यह मामला अब सिर्फ एक व्यक्ति की रिहाई का नहीं, बल्कि नागरिक अधिकारों और लोकतंत्र में असहमति के स्थान का हो गया है। अब पूरे देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं कि वह इस मामले में सरकार से क्या जवाब तलब करता है।

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