📰 झारखंड की नई उत्पाद नीति पर विवाद : शराब दुकानों से उठ रहे सवाल
गोड्डा, बसंतराय। झारखंड सरकार ने 1 सितंबर 2025 से नई उत्पाद नीति लागू कर दी है। इस नीति के तहत पूरे राज्य में शराब की खुदरा बिक्री निजी कारोबारियों को सौंप दी गई है। सरकार ने लॉटरी प्रणाली के जरिए कुल 1343 दुकानों का आवंटन कर दिया है।
नई व्यवस्था में खुदरा बिक्री का जिम्मा निजी हाथों में रहेगा जबकि थोक आपूर्ति राज्य सरकार के पास होगी। इस नीति से सरकार को राजस्व में वृद्धि की उम्मीद है, लेकिन इसका सामाजिक असर गंभीर विवाद को जन्म दे रहा है।
गोड्डा जिले का सबसे छोटा प्रखंड बसंतराय इस विवाद का केंद्र बन गया है क्योंकि यहाँ एक साथ तीन शराब की दुकानों की अनुमति दी गई है। स्थानीय लोग इसे सीधे-सीधे शिक्षा, युवाओं के भविष्य और सामाजिक सुरक्षा पर हमला मान रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार का ध्यान अब विकास या रोजगार पर नहीं, बल्कि शराब से होने वाली आमदनी पर अधिक है। बसंतराय क्षेत्र का गोपिचक गाँव वर्षों से वित्तीय और शैक्षणिक दृष्टि से सक्रिय माना जाता रहा है। यहाँ का बैंक इलाके का सबसे पुराना और सबसे अधिक खाता धारकों वाला बैंक है। यह स्थान ग्रामीणों की आर्थिक गतिविधियों का केंद्र है। लेकिन अब उसी इलाके में शराब की दुकान खोल दी गई है। स्थानीय लोग चिंतित हैं कि इससे सामाजिक ताना-बाना बिगड़ेगा। बैंक आने-जाने वाले लोग, महिलाएँ और विद्यार्थी अब असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इसके अलावा, यह इलाका बिहार सीमा के बेहद नजदीक है। चूँकि बिहार में शराबबंदी लागू है, इसलिए झारखंड के इन दुकानों से वहाँ के लोग आसानी से शराब खरीदने आएँगे। नतीजतन, झारखंड सरकार का राजस्व तो बढ़ेगा, लेकिन समाज को नुकसान उठाना पड़ेगा।
शिक्षा और युवाओं की उपेक्षा
बसंतराय प्रखंड और गोड्डा जिले के अधिकांश गाँवों में शिक्षा की स्थिति बेहद खराब है। कई ऐसे स्कूल हैं जहाँ आज तक स्थायी शिक्षक तक नियुक्त नहीं हो पाए। अधिकांश विद्यालयों में वर्षों से एक ही शिक्षक पूरी कक्षा को संभालने को मजबूर है। अगर सरकार चाहे तो पड़ोसी राज्यों से सीख ले सकती है। बिहार में शराबबंदी भले विवादास्पद रही हो, लेकिन वहाँ शिक्षा और सामाजिक सुधार पर लगातार काम हो रहा है। पश्चिम बंगाल में लगातार शिक्षक नियुक्तियाँ होती रही हैं। इसके विपरीत, झारखंड में वर्षों से शिक्षक बहाली रुकी हुई है। JSSC जैसी परीक्षाओं में पारदर्शिता की कमी युवाओं का विश्वास तोड़ रही है। ग्रामीण इलाकों के स्कूलों को मजबूत करने की बजाय शराब की दुकानें खोलना सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े करता है।
युवाओं का आक्रोश लगातार बढ़ रहा है क्योंकि सरकार ने जितने वादे किए थे, उतने पूरे नहीं हुए।
- JTET परीक्षा अब तक आयोजित नहीं की जा सकी है।
- JSSC CGL भर्ती 2016 से लंबित है। लाखों अभ्यर्थियों का पैसा कट गया लेकिन अब तक नियुक्ति नहीं हुई।
- जिन परीक्षाओं की प्रक्रिया शुरू हुई, वे बार-बार रद्द कर दी गईं।
इस कारण युवाओं का भरोसा सरकार से उठता जा रहा है। उनका कहना है कि अगर सरकार वाकई भविष्य संवारना चाहती है तो पड़ोसी राज्यों की तरह शिक्षक बहाली करनी चाहिए और समय पर परीक्षाएँ आयोजित करनी चाहिए।
लेकिन उल्टा हो यह रहा है कि रोजगार और शिक्षा पर ध्यान देने के बजाय जगह-जगह शराब की दुकानें खोली जा रही हैं। इससे साफ संकेत मिलता है कि सरकार की प्राथमिकता युवाओं का भविष्य नहीं, बल्कि राजस्व बढ़ाना है।
📌 समाज पर असर और महिलाओं की चिंता
नई उत्पाद नीति के तहत बसंतराय और गोड्डा के अलग-अलग हिस्सों में शराब दुकानों के खुलने से स्थानीय समाज में चिंता की लहर फैल गई है।
गाँवों और कस्बों की महिलाएँ और अभिभावक सबसे अधिक परेशान हैं। उनका कहना है कि शराब की दुकानों से सबसे बड़ा खतरा युवाओं पर मंडरा रहा है।
- नशे की लत बढ़ेगी और पढ़ाई-लिखाई चौपट होगी।
- परिवारों में कलह और हिंसा की घटनाएँ बढ़ेंगी।
- महिलाएँ और बच्चियाँ असुरक्षित महसूस करने लगी हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि रोजगार और शिक्षा पहले से ही उपेक्षित हैं, और अब शराब की दुकानों के चलते असामाजिक गतिविधियों में इजाफा होगा।
लोगों ने व्यंग्य में कहा कि "जहाँ दूध की डेयरी और शिक्षा केंद्र खुलने चाहिए थे, वहाँ सरकार शराब की दुकानें खोल रही है।"
📌 बिहार सीमा से शराबियों को आसानी और तस्करी
बसंतराय प्रखंड का इलाका बिहार सीमा से सटा हुआ है। यहाँ से कुछ ही दूरी पर बिहार की सीमा शुरू हो जाती है। यह स्थिति और भी खतरनाक इसलिए है क्योंकि बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि झारखंड में खुले शराब दुकानों का सबसे बड़ा फायदा बिहार के शराबियों को मिलेगा। वे आसानी से यहाँ आकर शराब खरीदेंगे और फिर उसे बिहार ले जाएंगे। इससे न सिर्फ झारखंड के युवाओं पर नशे का बोझ बढ़ेगा बल्कि बिहार में भी तस्करी और अवैध कारोबार तेज़ हो जाएगा।
गोपिचक जैसे इलाकों में, जहाँ पहले से बैंक और शैक्षणिक माहौल मौजूद था, अब शराब दुकानों के खुलने से माहौल बिगड़ने लगा है। लोग कह रहे हैं कि यह जगह अब बिहार के शराब माफियाओं का नया ठिकाना बन सकती है।
ग्रामीणों का आरोप है कि सरकार ने खुद ही सीमावर्ती इलाकों को "शराब का अड्डा" बना दिया है, जबकि दावा किया गया था कि सीमा से दूर दुकानों को अनुमति दी जाएगी।
📌 जनता की अपेक्षाएँ और सवाल
- आखिर कब तक युवाओं को रोजगार और शिक्षा से वंचित रखा जाएगा?
- कब तक लंबित परीक्षाओं और नियुक्तियों को लटकाया जाएगा?
- क्या सरकार के लिए समाज का भविष्य नहीं बल्कि सिर्फ राजस्व ही मायने रखता है?
ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार को सचमुच विकास करना है तो उसे शिक्षा पर निवेश करना होगा और हर स्कूल में शिक्षकों की बहाली करनी होगी।
📌 सामाजिक माहौल और असुरक्षा की भावना
- शाम होते ही बाजार और चौराहों में शांति नहीं रहती, शराब पीकर हंगामा करने वाले दिखाई देने लगे हैं।
- महिलाएँ और विद्यार्थी अब असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
- स्कूल से लौटती बच्चियों को डर लगता है और परिवार देर शाम बाहर जाने से बच रहे हैं।
- चोरी-छिनतई की घटनाएँ बढ़ने लगी हैं।
📌 नीति पर विशेषज्ञों और समाज का दृष्टिकोण
आर्थिक विशेषज्ञ: सरकार का मकसद राजस्व बढ़ाना है, लेकिन सामाजिक प्रभावों पर ध्यान नहीं।
समाजसेवी: शराब की बढ़ती दुकानों से ग्रामीण और गरीब परिवार प्रभावित होंगे।
महिला समूह: घरेलू हिंसा, झगड़े और अपराध बढ़ने की आशंका।
युवाओं की नाराजगी: लंबित परीक्षाएँ और नौकरी नहीं मिलने से निराश।
📌 बिहार की शराबबंदी और झारखंड पर असर
- सीमावर्ती इलाकों में बिहार से आने वाले शराबी आसानी से शराब खरीद सकते हैं।
- तस्करी और अवैध कारोबार बढ़ सकता है।
- महिला और बच्चों की सुरक्षा प्रभावित होगी।
- सामाजिक विरोधाभास: बिहार शराबबंदी, झारखंड खुला बाजार।
सरकार से जनता की अपेक्षाएँ और संभावित समाधान
- शिक्षा और रोजगार सुनिश्चित करना।
- शराब दुकानों के स्थान और संख्या पर सामाजिक प्रभाव के अनुसार नियंत्रण।
- सामाजिक जागरूकता अभियान।
- पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना।
झारखंड सरकार की नई उत्पाद नीति से राजस्व लाभ हो सकता है, लेकिन इससे समाज और युवाओं के भविष्य पर गंभीर असर पड़ रहा है। बसंतराय जैसे छोटे प्रखंड में शराब दुकानों का तेज़ी से खुलना शिक्षा, सुरक्षा और सामाजिक संतुलन के लिए खतरा है।
ग्रामीणों का मानना है कि शराब से राजस्व बढ़ाने की बजाय अगर सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर ध्यान दे, तो राज्य का भविष्य सुरक्षित होगा। अन्यथा आने वाले समय में झारखंड का ग्रामीण समाज शराब के दुष्प्रभावों से जूझता रहेगा।
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